रिया तब १3-१4 साल की थी जब उसका परिवार मेरे पड़ोस में रहने आया। अपने तीन भाई बहनों में वह सबसे छोटी थी। मैं तब जिस घर में किरायेदार था, रिया का परिवार उस घर के पीछे वाले घर में किराये पर रहने आया था। उसके पापा एक बैंक में काम करते थे और माँ घर पर रहती थी। मेरी उम्र तब करीब ३५-३६ थी, और हमेशा की तरह मैं तब भी एक छुट्टा सांड़ की तरह जीता था। तब मैं अब से थोड़ा जुनियर पोजीशन पर था और मुझे काम से सिलसिले में टूर भी खुब करना होता था। बाहर तो जो होता था सो तो था हीं, पर अपने फ़्लैट पर भी महिने में २-३ बार लड़की ला कर चोदा करता था। मेरे मकान-मालिक को फ़ायदा यही था कि वो अक्सर मेरे फ़्लैट में आ कर ब्लू-फ़िल्म देखता और साथ में मुफ़्त की दारू पीता। वो कामुक बहुत था, पर डरपोक भी था। वैसे भी उसने शहर में घर बनया जरुउर था पर रहता था आज भी करीब ४० कि०मी० दूर गाँव के अपने पुस्तौनी घर में। महिने में २-३ बार आता था एक-दो दिन के लिए। खैर मुझे तो रिया की बात बतानी है।
रिया का परिवार भी मेरी तरह घर के ऊपर वाले हिस्से में रहता था और उसके घर का पिछवाड़ा और मेरे घर का पिछवाड़ा आमने-सामने था। दोनों घरों के बीच करीब १५ फ़ीट जगह थी। मेरे लीविंग-रूम की खिड़की और उसके बेड-रूम की खिड़की आमने-सामने थी। करीब दो महिने तक तो मुझे पता भी नहीं चला कि पीछे वाले घर में कोई किराएदार आया है, पर एक दिन उसके घर शायद कोई पार्टी-वार्टी थी तो हो-हल्ला सुन कर मैंने खिड़की को खोल कर देखा और तब मुझे पता चला कि वहाँ कोई नया परिवार रहने आया है। इसके पहले एक रिटायर्ड दंपत्ति उस घर में रहते थे, और मैं हमेशा अपना वो पीछे की तरफ़ खुलने वाली खिड़की को बंद हीं रखता था (पीछे कोई आकर्षक नजारा नहीं था न)। पर आज तो उस पार्टी की वजह से कई तरह की चूत-वालियाँ दिखी। उसी दिन शायद उन लोगों को भी मेरे होने का अहसास हुआ, और फ़िर करीब १५-२० दिन बाद पहली जनवरी (रविवार) को सुबह अचानक वो पुरा परिवार मेरे घर फ़ूलों का एक गुल्दस्ता ले कर आ गया। मेहता जी ने मुझे नये साल की बधाई दी, जब तक मैं कुछ समझूँ मेहता जी ने अपने बच्चों को कहा कि अरे बच्चों जरा मामा जी के पैर छुओ नये साल के दिन और इस तरह वो मुझे अपना साला बना दिए और मिसेज मेहता को मेरी दीदी। पहले १९ साल की निशा ने मेरे पैर छुए फ़िर १७ साल के रवि ने और अंत में १४ साल की रिया ने मुझे विश किया। मिसेज मेहता ने हँसते हुए कहा, अगर आपको कोई परेशानी हो तो आप मुझे भाभी भी कह सकते हैं, बच्चों का क्या है, अंकल तो कौमन संबोधन हैं हीं। तब मेरे मुँह से निकला था-अरे नहीं दीदी, ऐसा कुछ नहीं है। मिसेज मेहता करीब ३८-३९ साल की थी और मेहता साहब करीब ४५ के।
उस दिन जो परिचय हुआ वो बहुत जल्दी घनिष्ट हो गया। अब तो लगभग हर छुट्टी-वाले दिन दीदी (मैं अब मिसेज मेहता को यही कहता) के घर से बुलावा आ जाता नौन-वेज खाने पर और घर पर भी सब मुझे अपने परिवार का हिस्सा हीं समझते। मेहता साहब रंगीन-मिजाज आदमी थे, और मेरी उनसे खुब जमती। दारू का भी साथ होता, कभी-कभी दीदी भी साथ देती और उस दिन मेहता साहब अपनी बीवी से चुहल करते तो मैं भी मजे लेता। मेरी नजर तो मिसेज मेहता के भरे-भरे बदन को घुरती रहती और मौका मिलने पर निशा की जवानी से भी आँख सेंकता। मेरा इरादा मिसेज मेहता को पहले अपने नीचे लिटाने का था और फ़िर कभी निशा को। तब मैं आज-कल की तरह नयी-नवेली जवानी का रसिया नहीं था। तब तो मुझे ३० के आस-पास की खेली-खायी मस्त गदराई माल ज्यादा पसंद आती थी। बहुत मस्त हो कर चुदवाती है ३० के आस-पास की पूरी तरह से खिली हुई औरत, एकदम बेलौस। तब निशा मुझे दुबली-पतली सुखी हड्डी सी काया वाली लगती, और रिया तो बिल्कुल हीं बच्ची। मैंने तब तय कर लिया था कि होली के दिन रंग के बहाने मिसेज मेहता को जरा-जरा करके हाथ लगाऊँगा और फ़िर उसके रेस्पौन्स के आधार पर आगे की सोचुँगा।
और होली के दिन तो मुझे सुबह से हीं वहाँ आने का निमंत्रण मिला हुआ था तो मैं सफ़ेद कुरते-पौजामे में सुबह की चाय पीने के बाद करीब ९ बजे हीं मेहता जी के घर पहुँच गया। रवि और रिया होली खेलने अपने दोस्तों के घर चले गए थे। निशा अपनी माँ के साथ किचेन में थी। मेहता साहब छत पर थे। मेरे वहाँ पहुंचने पर वो खुश हुए और नीचे से कुछ खाने को उपर लाकर देने को कहा। मिसेज मेहता कुछ पकौड़े ले कर आईं और फ़िर बोली, खाने के पहले थोड़ा रंग तो लगा लीजिए, ऐसे एक दम सादा अच्छा नहीं लग रहा। मेहता साहब ने अपने जेब से लाल रंग निकाला और सुखा हुआ रंग अपनी बीवी के सर पे गिरा दिया। मुझे अपना हाथ जेब की तरफ़ ले जाते देख वो बोली, अभी आती हूँ मैं भी रंग ले कर, और वो नीचे चली गयी। जब आई तो पुरी तैयारी के साथ - बाल्टी में पानी, एक छोटा मग और कई रंग के पैकेट। अगले २-३ मिनट में हीं हम सब के चेहरे रंगे पुते हो गए। मेहता साहब अपनी बीवी से थोड़ा कम पर रहे थे रंग खेलने में। वो अकेले हम दोनों के चेहरे को कई बार पोत चुकी थी। तभी मैंने एक झटके से मिसेज मेहता के दोनों हाथ पकड़ कर पीछे से उन्हें जोर से जकड़ लिया। एक हाथ से मैंने उनके दोनों कलाईयों को जकड़ा और दुसरे हाथ को उनके पेट के उपर से लपेत कर उनके पीठ की तरफ़ से चिपक गया था। मैंने अब मेहता साहब से कहा, "अब दीदी को आराम से रंगिए, मैं इसे जकड़े हुए हूँ।" साड़ी में लिपटी मिसेज मेहता कसमसाती तो मेरी पकड़ और बड़ जाती। मेहता साहब ने तब आराम से अपनी बीवी के चेहरे, गले आदि को खुब प्यार से रंगा। फ़िर मेरे हाथ में रंग थमा दिया कि मैं भी लगाऊँ। मैंने महसूस किया कि दीदी अब वैसा कसमसा नहीं रही है तो मैं ने अपनी पकड़ हल्की करके उनकी खुली हुई पेट और पीठ को रंगना शुरु किया। दोनों हाथों से एक बार ही साईड में लगा, फ़िर आराम से वो खड़ी हो गई और मुझसे और मेहता जी से अपना पुरा खुला बदन रंगवाई। पहले पेट-पीठ फ़िर दोनों बाँह-हाथ और फ़िर खुद हीं अपनी साड़ी को घुटनों तक उपर कर के हमें आगे का ईशारा किया। मेहता साहब भी शरारत करते हुए नीचे बैठ कर उसके पाँव को रंग लगाने लगे, मैं अब रुक गया था। मेहता साहब ने कि ये दो है, एक तुम रंगों यार एक मैं। और फ़िर तेजी से अपना हाथ साड़ी के भीतर जाघों तक पहुँचा दिया। मिसेज मेहता अब बहुत शर्माई और धत्त कह कर जल्दी से नीचे भाग गयी। फ़िर मेहता साहब नीचे से दारू और फ़्रायड चिकेन ले आए और इसके बाद हम खाने-पीने लगे।
करीब घंटे भर बाद हम भी बाहर निकल गए और जब करीब दो घन्टे बाद वापस आए तो देखा कि वो सब भी पुरी तरह से रंग में डुबे हुए हैं। हमें आया देख रिया चहकी, "आप दोनों तो मेरे से रंग खेले बिना हीं रंग गए अब मैं कहाँ रंग लगाउँ?" मेहता साहब तुरंत मेरा कुर्ता उपर करके बोले, "यहाँ पेट पर लगा दो, यह एक दम साफ़ है", और तब पहली बार उस रिया ने मेरे बदन को स्पर्श किया था। एक बच्ची का हीं स्पर्श था वह, पर जब निशा ने मेरे बदन को छुआ तब मुझे फ़र्क लगा, उसकी उँगलियाँ तो जवान थी न। रवि नहाने गया था और करीब १ बज भी गया था तो मिसेज मेहता ने कहा कि अब सब नहा धो लो, दो घन्टा तो सब को साफ़ होने में लगेगा। ऐसे भी सब थक गए थे। मैं भी घर आने के लिए उठा तो रिया बोली-"मैं भी साथ चलती हूँ मामा। यहाँ तो अभी ३ आदमी है लाईन में, वहाँ आपके घर पर तो सिर्फ़ आप हैं।" जल्द हीं वो अपना कपड़ा ले आई और मैं उसके साथ अपने घर आ गया। मैं जब अपने तौलिये, कपड़े निकालने लगा तो रिया बोली, "एक मिनट, जरा मुझे पेशाब कर लेने दीजिए" और वो बाथरूम में घुस गई। लौटी तो बोली, "अंदर बहुत ठंडा पानी है" तब मुझे याद आया की मेरा गीजर दो दिन पहले खराब हो गया था। मैंने यह बात रिया को बताई। मेरे घर के नीचे वाले मकान-मालिक के हिस्से में एक हैंड्पम्प हैं सो मैंने कहा कि यहाँ ही मैं नहा लेता हूँ, तुम बाथरूम में नहा लो। उस ठंडे पानी को याद करके रिया बोली कि वह भी उसी हैंड्पम्प पर हीं नहा लेगी, वहाँ धूप की गर्मी तो मिलेगी। वह भी मेरे साथ नीचे के आँगन में आ गई।
मैंने एक बाल्टी में पानी भरा और अपना रंगों से बोत कुर्ता-पैजामा और गंजी खोल कर एक तरफ़ रख दिया, और सिर्फ़ एक अंडरवीयर में बैठ कर अपना सर धोने लगा। रिया सामने खड़ी हो कर हैंड्पम्प चलाने लगी। जब तीसरी बार वो हैंडिल दबाते हुए पम्प पर झुकी तब पहली बार उसकी फ़्रौक के खुले गले से भीतर का नजारा दिखा। रिया की चुची अब उभार लेने लगी थी। नींबू से थोड़ा बड़ा आकार था उनका। अभी तो वो उभर हीं रहीं थी, सो लटकने जैसी कोई बात हीं नहीं थी, सीधा सामने की तरफ़ फ़ुली हुई थी। मुझे अभी तक वो बच्ची हीं लगी थी, सो मैंने कुछ खास ध्यान नहीं दिया। मैं नहा रहा था और एक बार साबून लगा चुका था। पर होली का रंग क्या एक बार में साफ़ होना था। पेट पर बड़ा पक्का रंग लगाया था रिया ने। मैं अब दुबारा साबुन मल रहा था बदन पर। रिया बाल्टी भर कर बोली, "मैं भी अब सर धोना शुरु करती हूँ", और मेरे अनुमान के विपरीत रिया भी मेरी तरह हीं अपना कपड़ा खोल दी। जल्द हीं सिर्फ़ एक पैन्टीनुमा जांघिया में मेरे सामने बैठ गई और अपना सर पानी से भीगोने लगी। देसी शैली के संडास में जिस तरह से हमसब बैठते हैं वैसे हीं वो मेरे सामने बैठी थी और तब पैन्टी के तन जाने से उसकी बूर कैसी और कितनी फ़ुली हुई है, यह अंदाज लगाना मेरे जैसे कमीने मर्द के लिए मुश्किल न था। अब मेरा नहाना कम हो रहा था और माल दर्शन ज्यादा। पर एस माल में मुझे बचपन से भरी एक कच्ची कली का आहसास था। तब मेरा मानना था कि कच्ची चीज खट्टी ज्यादा होती है (मैंने बताया है आपको कि तब मैं २८-३० से कम की माल को चोदने में कम हीं इच्छुक रहता था)। एक बार सर धोने के बाद रिया ने चेहरा ऊपर किया और बोली "चेहरे पर ज्यादा रंग है क्या?" उसका हाथ अभी भी सर पर था सो मेरी नजर उसकी काँख में गई। बस ४-६ धागे थे रोएँ जैसे वहाँ, काँख के बाल के नाम पर। मुझे अपने काँख में देखते हुए जान कर रिया ने अपना हाथ हल्का नीचे किया तो वो रोएँ भी काँख के गड्ढ़ें में कहीं छुप गए। मैंने उसका चेहरा घुरा और कहा, "हाँ, रंग तो है। तीन-चार बार अगर साबुन से धोवोगी तो शायद ठीक-ठाक कम हो जाए"।